...

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आईना फितरत कैसे छोड़ देता ...
आईना है तो खुद से बात होती है।
मेरी आईने में खुद से मुलाकात होती है।
मुझे रूप बदलना न पड़ता
ये आईना अगर मुझे समझ लेता।
जाहिर मैंने ही नहीं होने दिया तो फिर आईना कैसे होने देता।
मेरे लिए आईना अपनी फितरत कैसे छोड़ देता।
टूटा हुआ आईना भी मुझ बिखरे हुए इंसान को पूरा ही बताता है।
मैंने भेद करना जमाने से सीखा है।
मेरे कम या ज्यादा होने का फर्क
आईने को नहीं पड़ता।
मैं जैसी हूं,
आईना तो आज भी मुझे वैसी ही बताता।
जाहिर मैंने ही नहीं होने दिया तो फिर आईना कैसे होने देता।
मेरे लिए आईना अपनी फितरत कैसे छोड़ देता।
✍️मनीषा मीना