अक्सर अकेले बैठे हुए....
हम अक्सर अकेले बैठे हुए,
जाने क्या क्या सपने बुनते हैं।
जो दिखता नही,वो देखते हैं,
जो सुनता नही,वो सुनते हैं।
ख़ामोशी के आलम में भी,
शोर में घिर घिर जातें हैं ,
अंधेरों से घिरे हो फिर भी,
रौशनी से भर जाते हैं।
एक जगह बैठे बैठे ही हम,
जाने कहाँ कहाँ हो आते हैं।...
जाने क्या क्या सपने बुनते हैं।
जो दिखता नही,वो देखते हैं,
जो सुनता नही,वो सुनते हैं।
ख़ामोशी के आलम में भी,
शोर में घिर घिर जातें हैं ,
अंधेरों से घिरे हो फिर भी,
रौशनी से भर जाते हैं।
एक जगह बैठे बैठे ही हम,
जाने कहाँ कहाँ हो आते हैं।...