...

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ज़िन्दगी के धागे सुलझाना चाहता हूँ।
ज़िन्दगी के धागे सुलझाना चाहता हूँ।
किसी बिखरे हुए शख्स के पास जाना चाहता हूँ।

मेरे सीने का जो दर्द पढ़ ले,बस उसे सीने से लगाना चाहता हूँ।
बर्बादी के किस्से छोड़ आबादी के गीत गुनगुनाना चाहता हूँ।

वैसे तो खुदा पर विश्वास रहा नहीं, पर उस शख्स को ख़ुदा बनाना चाहता हूँ।

हैरत होती कभी ख़ुद को सोच कर,उसे सोच सोच अब मुस्कुराना चाहता हूँ।

बीता कल बीती बातें, सब भूलकर उसे आज दिखाना चाहता हूँ।

पढ़कर जो मुझे दिल से मुस्कुराए,
मैं उसे अपने लफ़्ज़ों में लाना चाहता हूँ।

होता है जीना मरने से मुश्किल।
बस ये बात अब दुनिया को बताना चाहता हूँ।

© राजू कुमार