...

6 views

तुम्हे जीत जाऊँ
तुम्हे जीत जाऊँ
एक दंत दयादन्त के संग मिल
गीत कोई नया लिख जाऊँ
गीतों के साथ तुम्हारे झूम जाऊँ
नव पुलकित मन रह रह गाए
नया गीत है
तू ही तो मेरा मन मीत है
तुम्हे कैसे जीत जाऊँ
तरक़ीब कोई बता दे
तू कोई वस्तु नहीं
कल्पना की अल्पना से बनी मूर्ति है
अदृश्य हो मुझसे नित बातें करती है
मुक़द्दर से अपने लड़ जाऊँ
तुझे जीत अपना मुक़द्दर
तुम्हे बता जाऊँ
दिल कहता
मुझसे बार बार
तुम्हे जीत जाऊँ
चल नीले गगन में उड़ते बादलों के संग
कहीं उड़ जाऊँ
गीत गाते पंछियों से कुछ अपनी
कुछ उनकी सुना जाऊँ
वो भी न सुने तो
दिल मेरा कहता बार बार
तुम्हे ही सब सुना जाऊँ
तुम्हे जीत जाऊँ
तो उड़ते परिंदे के भी पर गिन जाऊँ
मौसम बदलने का इंतज़ार न करूँ
खुद में ही एक बदलाव लाऊँ
किसी की नज़र में न सही
अपनी नज़र में ऊँची उठ जाऊँ
अपने आप में खरी मैं उतर जाऊँ
तुम्हे जीत जाऊँ
गगन से दो चार बात कर
फिर इस धरा पे वापस आ जाऊँ
किसी से कोई शिकवा न गिला करूँ
नित माँ के चरणों में ही मैं नमन करूँ
उनसे ही बातें हजार करूँ
तुम्हे जीत जाऊँ
मुक़द्दर अपना सी जाऊँ
तुम्हे जीत जाऊँ
तुम्हे जीत जाऊँ
न कोई मंज़िल की चाह है
बस अपने आप को
अपनी नज़र में साबित
करने की चाह है
ऐसे कैसे कह दूँ
मेरा मुकद्दर मुझसे रूठा है
मेरा मनमीत गजानन झूठा है
एक बार तुम्हे जीत जाऊँ
तब जाकर अपने आपको जीत जाऊँ
तब जाकर
अपने आप को जीत जाऊँ
अपने आपको जीत जाऊँ
© Manju Pandey Choubey