फिर मिलेंगे
ज़िम्मेदारियों और हर फ़र्ज़ को निभाकर,
तक़दीर के दिए इन लम्हों को गुज़ारकर,
रूह से जिस्म रूपी लिबास को उतारकर,
वहाँ दूर कहीं फिर मिलेंगे कभी तुमसे हम,
सनम! तुम्हारी कसम... हाँ तुम्हारी कसम।
हर गिला- ओ- शिकवा को यहीं पर भुलाकर,
तुम्हारे...