...

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मेरी जिंदगी...
मेरी जिंदगी तुम मुझे न बताओ ,बंदा हूं खुदा का ,जमाने से क्या
मेरी तस्वीर तो उस खुदा की कलम से है ,तस्वीरों को आईना दिखाने से क्या

शौक़-ए-रफ़्तार का जुनून न पूछिये,पंछी हूं आसमानों का,मुझे अपनी ज़मीने दिखाने से क्या
और गिर भी गया तो फिर उड़ चलूंगा,मुझे अपनी फ़ितरत बताने से क्या

चल नहीं सकता हूं रास्तों पे तुम्हारे ,सौ रास्तें हैं सौ बंदिशें हैं ,और आसमानों में रास्तों की बंदिशें नहीं होती,फ़िर मुझे अपना रस्ता बताने से क्या

परवाह नहीं मुझको ये जो उंगलियां उठती हैं,मगर मुझपे उंगली उठाने से क्या
और कह भी लीजियेगा जी अगर जले तो ,मन
ही मन मन को जलाने से क्या

और अगर मोह़ब्बत भी है ज़नाब तो खुल के कीजियेगा,आखों ही आखों में जताने से क्या