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कहाँ खोजूँ: बचपन
मंच से जुड़े सभी रचनाकारों को मेरा प्रणाम,
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ज़माने बाद आई हूँ, मैं तुझसे रू~ब~रू होने,
धुंधले से हैं सब मंजर, लगे हैं रास्ते खोने।।

नहीं कोई निशां बाकी, जो थे मेरे ख्यालों में,
निकल आई मेरे बचपन, तेरी मैं आज टोह लेने।।

न दादी की कहानी थी, न राजा...