...

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तलाश
किताबों में उलझी ये जिंदगी हमारी
ना जाने किस ओर ये दुनिया ले जा रही
हाथ में बस परेशानी ही आ रही,

देखूं मैं चारो ओर तो मुरझाते से चेहरे हैं
आंखो में बस उम्मीद वो बसा रहे हैं,
भीड़ है उस मंजिल के लिए
और ये दुनिया वाले हमारे मजे लिए जा रहे है।

घबराता ये मन
सोचू हर रोज की यही होगा मुझसे,
बदलेंगे ये दुनिया
बस साथ चाइए उस रब से...
मेहनत भी करेंगे ,किताबें भी पढ़ेंगे
अरे तू बोल तो सही
तेरे दर पर आ कर तुझसे बातें भी करेंगे,
ना देखू मैं खुदको
और ना देखू मैं किसी और को,
मेहनत तो हम भी करे हैं
तो क्यों मिले फल किसी और को....

© sharma