...

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सुनो बिटिया
सुनो बिटिया,
तू पढ़ने में होशियार है,
घर के पास वाले असकूल से पढ़ो
भाई को भी तो पढ़ाना है
जाने-आने का वक्त बचेगा
घर-बार का दुई काम उबरेगा
मान लो बात, करो थोड़ा उपकार।

बिटिया मुसकाई थी।
तब जादा ना समझ पाई थी।

सुनो बिटिया,
रिशता अच्छा है
लड़का देखने में थोड़ा बड़ा है,
कोई देहज नहीं ले रहा
देख लो, कितना सच्चा है।
घर-बाप का बोझ उतरेगा
मान लो बात, करो उपकार।

बिटिया मुसकाई थी।
लड्डू ढूंसे मुंह से कुछ कह न पाई थी।

सुनो बिटिया,
तुम इस घर की बहु हो
पर खुद को बेटी ही समझना।
चार-दिवार के अंदर जो बात हो
सब मन के भीतर दबा कर रखना
घर-ससुराल का लाज सहेजना,
बस यही तुम्हारा काम है, नहीं कोई उपकार है।

बहुरिया मुसकाई थी,
तरेरती आंखें देख घूंघट से कहा कुछ कह पाई थी।

मेरी भी सुनो बिटिया
खूब पढ़ो
बात कहो
न सहो
कम डरो
ऊंचा उड़ो
दंभ भरो
एक बार लड़ो
आगे बढ़ो
ऐसे जियो
फिर हंसों
और मुसकाओ।

दहलीज़
शिल्पी प्रसाद