...

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बचपन...!!!
अनगिनत ख्वाब,
कुछ उलझे जवाब,
बिखरी सी ये जिंदगी,
मानो हो जैसे अजनबी...!!!

मिली थी एक मोड़ पर उससे मैं,
नाम था जिसका बचपन,
तब सुलझी थी ये जिंदगी,
अब कहा वो दिन, कहा वो बचपन...!!!

अब तो कैद हूँ मैं,
दुनियादारी कि बातों मे,
पर जब भी कभी मिलती है तस्वीरें उस बचपन की,
खो जाती हूँ मैं उन सुनहरी यादों मे...!!!

अब तो ख्वाबों को,
पूरा करने करने की कोशिश जारी है,
कुछ सवाल है जिंदगी से,
उनके जवाब ढूँढने की अब बारी है...!!!

- Deepali S Jain

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