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कई राज, अंधेरों में जीवन जीते है
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कई राज, अंधेरों में जीवन जीते है,
कुछ छिपे हुवे, तो कुछ कल्पनाओं के पले होते है।
माना अंधेरा कई सच्चाईयो को समेटे रखता है,
पर रोशनी से भी झूठ कहा बेआबरू होता है।
लाख होंगे प्रकाश के ठेकेदार,
पर होता है अंधेरा, कईयों का राजदार।
बदन पर चाहे हो अनेकों घाव, और छोड़ रहा हो, अपने प्राण,
जाते जाते कहेगा वो भी, कि उसे मृत्यु सा अंधेरा खा गया,
उजाले का क्या, अंधेरा बेवजह ही बदनाम हो गया।
निः शब्द होकर, छोड़ प्राण, अंत में होगा अंधेरा ही पास,
और बता.....आंखे मूंदकर, क्या देखा है कभी प्रकाश,
फिर करते है खुद की अंधेरे में तलाश।
सुना है, सच कहना, इबादत है खुदा की, –२
मगर इससे नहीं देखी, खुदा की वफादारी।।
© AshR