...

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मुझे पढ़िए.....!
मुझे पढ़िये....!!
मैं वो खुली क़िताब सा हूं
जिसने उकेरे है
जाने कितने ही संघर्ष पन्नों पर,
वो अनुभव, वो संघर्ष
किसने किया प्रहार मेरे सपनों पर।
तुम्हें महसूस करना है तो
मुझे पढ़िये....!!

अन्तर्मन को विचलित करती
ये समन्दर सी लहरे
इस में खो जाने दो खुद को,
लहर बनो स्वयं
समन्दर हो जाने दो खुद को।
वो थाह समन्दर का लेना है तो
मुझे पढ़िये....!!

उतरना तुम हृदय की गहराइयों में
हकीक़त से रूबरू होने को
कितना कुछ सहा है
हंसते चेहरे ने,
कितनी नादानियां चुरा ली
जिम्मेदारियों के फेरे ने।
तुम्हें ज़िम्मेदारियों का एहसास करना है तो
मुझे पढ़िये....!!

ये मंजिल का सफ़र आसान नहीं है
कोई छोड़ गया, कोई छूट गया
पर तुम पढ़ सको तो,
पढ़ना तुम मेरे शब्दों के भावों को,
बहुत दर्द करते हैं जो
भर न सका वक़्त कभी उन घावों को।
कुछ शब्दों में जीना है संघर्ष मेरा तो
मुझे पढ़िये....!!

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet043