...

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तुम्हारी ही सूरत
तुम्हारी ही सूरत नज़र आ रही है,
निग़ाहों को हमने हटाकर के देखा,
तबस्सुम की सारी महक आ रही है,
घटाओं पे पेहरा लगाकर के देखा,

कई रोज़ पहले ये दिन कुछ अलग थे,
वफ़ाएँ भी ख़ाली यूँ गुमसुम पड़ी थी,
हसीनों की महफ़िल भी बेरंग थी, और,
सितारों की रौनक भी कुछ कम पड़ी थी,

वफाओं के घर मे चमक आ रही है,
के तुमसे ये दिल जो लगाकर के देखा,
तुम्हारी ही सूरत नज़र आ रही है,
निगाहों को हमने हटाकर के देखा....

तुम्हे ढूँढ़कर यूँ मनाने की हसरत,
तुम्हारे लबो को हँसाने की बाते,
कई बार तुमसे जिरह कर के लड़ना,
कई बार खुद हार जाने की बाते,
कुछ रोज़ पहले तक मैं बे अकल था,
अब कर रहा हूँ समझदारी की बाते,

नासमझ हौंसलो को समझ आ रही है,
जो तुमसे उन्हें यूँ बताकर के देखा,

तुम्हारी ही सूरत....


साँसों का साँसों से जा कर के मिलना,
तुम्हारा लजाना वो वाजिब अदा से,
मेरे हाथों की उस पकड़ को छुड़ाना
तुम्हारी कटि के कोमल प्रभा से,

ना जाने कैसी ये रहमत है रब की,
कि तुमको हमारा बनाकर के भेजा,
तुम्हारी ही सूरत नज़र आ रही है,
निगाहों को हमने हटाकर के देखा।।

© Vk