💐जिजीविषा💐
हवाएँ गर्म मौसम की,
मुझे यों छू नहीं सकतीं।
दुआ में उठने वाले वो,
अभी कुछ हाथ बाकी हैं।
टूटी हूँ, या बिखरी हूँ ,
उम्मीदें पर नहीं छूटीं।
न मैं हथियार डालूँगी,
एक अंतिम प्रयास बाकी है।
कुचले गए कई सपने,
असफलताओं तले फिर भी,
भरी जिजीविषा के साथ
वो अंतिम श्वास बाकी है।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
(जिजीविषा~जीने की प्रबल इच्छा)
रंजीत कौर✍️💐
मुझे यों छू नहीं सकतीं।
दुआ में उठने वाले वो,
अभी कुछ हाथ बाकी हैं।
टूटी हूँ, या बिखरी हूँ ,
उम्मीदें पर नहीं छूटीं।
न मैं हथियार डालूँगी,
एक अंतिम प्रयास बाकी है।
कुचले गए कई सपने,
असफलताओं तले फिर भी,
भरी जिजीविषा के साथ
वो अंतिम श्वास बाकी है।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
(जिजीविषा~जीने की प्रबल इच्छा)
रंजीत कौर✍️💐