...

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चार जून की बात।
#जून
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु
या बन छाएगा फिर से राहू
यह अजीब झंझावात है
चार जून की बात है।।
हर जी पाल रहा प्रतिघात है
यह तो सोच पर आघात है
मिलनी चाहिए बाहू से बाहू
न तो गैर तुम हो चाहे काहू
बिन वार गजब वारदात है
चार जून की बात है।।
कराह कहाँ सुनना निर्वात है
मानव चीख बनी दावात है
न कोई मोल हो अब लाहू
बिखर रहा तम बन त्रिबाहू
अजब गजब करामात है
चार जून की बात है।।
✍️राजीव जिया कुमार
सासाराम,रोहतास,बिहार।







© rajiv kumar