जिंदगी
ज़िन्दगी सुर्ख लाल पलाश- सी,
कभी जीतती, कभी हताश सी।
कभी नई कोपले खिली- सी।
कभी रात की ठहरी बूंद- सी,
जगाती सपने,सुबह की पहली धूप- सी।
कभी ख्वाहिशों की दास्तां गीली सी
कभी पिघलती आंसूओं में भीगी सी,
रास्ते रोकती,उलझनों के धागों सी।
कभी अकेलेपन में गुम स्याह सी,
कभी बिना फ्रेम के सपनों की तस्वीर - सी,
नकली चेहरा,झूठी मुस्कान लिए दगाबज सी।
कभी सरसों के फूलों की तरह पीली- सी,
कभी मिट्टी की खुशबू सौंधी सौंधी सी,
शाश्वत पुनीता,दूर तक बिछी उम्मीद - सी।
जिंदगी सुर्ख लाल पलाश सी,
कभी जीतती, कभी हताश सी।
©jyoti_
© Jyoti Dhiman
कभी जीतती, कभी हताश सी।
कभी नई कोपले खिली- सी।
कभी रात की ठहरी बूंद- सी,
जगाती सपने,सुबह की पहली धूप- सी।
कभी ख्वाहिशों की दास्तां गीली सी
कभी पिघलती आंसूओं में भीगी सी,
रास्ते रोकती,उलझनों के धागों सी।
कभी अकेलेपन में गुम स्याह सी,
कभी बिना फ्रेम के सपनों की तस्वीर - सी,
नकली चेहरा,झूठी मुस्कान लिए दगाबज सी।
कभी सरसों के फूलों की तरह पीली- सी,
कभी मिट्टी की खुशबू सौंधी सौंधी सी,
शाश्वत पुनीता,दूर तक बिछी उम्मीद - सी।
जिंदगी सुर्ख लाल पलाश सी,
कभी जीतती, कभी हताश सी।
©jyoti_
© Jyoti Dhiman