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ऐसे वैसे नहीं जीना...
अब यह नहीं कहना कि,
ऐसे ही जी लेंगे यह जिंदगी..!!

नहीं, ऐसे वैसे जीने को
नहीं कहते हैं जिंदगी।
खुशी आनंद प्रेम शांति से,
संपूर्ण संतृप्त होकर
जीने को ही कहते हैं "जिंदगी"।।

संतुष्ट जिंदगी
सदा श्रेष्ठ और उत्कृष्ट होता है।
जो नहीं लिखा है जिंदगी में,
उसको याद कर-करके
रोना, कोसना नहीं करना।।

जो हाथ में है, साथ में हैं,
सिर्फ वही है अपना।
अच्छी रीति से समझ लेना,
मेरा कहना।।

जिंदगी में साधना करना है तो,
अपने से आगे, अपने से श्रेष्ठ कौन है,
अपने से उन्नत उत्तम कौन है,
उनको देखकर, आगे बढ़ते रहना।।

संतुष्ट मन के लिए,
अपने से भी कनिष्ठ स्थिति में
जो अपाहिज, अनाथ,
गरीब, असहायक,
अज्ञानी लोग हैं
उनको देखना,
और ईश्वर को
शुक्रिया अदा करना।
क्योंकी,
हम अपाहिज नहीं, अनाथ नहीं,
रहने को मकान, खाने को कुछ नहीं,
ऐसे कहनेवालों में से नहीं हैं
और असहायक, अज्ञानी लोगों में से नहीं हैं।।

एक मंत्र सब समझना चाहिए कि,...
साधना के लिए,
अपने से भी श्रेष्ठ जनों,
साधकों को देखना चाहिए।
संतुष्टता के लिए,
अपने से भी
कष्ट से जीनेवाले जनों को
देखना चाहिए।।

© Vanishri Patil
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