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क्यों चले गए मौसम की तरह...
तुम मौसम नहीं थे फिर क्यों चले गए
इस बदलते मौसम की तरह।
जिस तरह बादल चले जाते हैं बारिश के
बाद क्यों चले गए सावन की तरह।
तुम वैसे ही अलग हो गए जैसे पतझड़ में
पत्ते शाखों से अलग हो जाते हैं।
तुम वैसे ही खो गए जैसे धूप के आने पर
रात के चमकते जुगनू खो जाते हैं।
तुम क्यों जाड़े की धूप की तरह छुपकर
मेरा सिसकना देखते रहे।
तुम क्यों बेवफ़ा मौसम की तरह हरबार
बहुत सारे रंग बदलते रहे।
तुम चले गए ख़ामोशी से पर मुझे वो मौसम
के बदलने वाली हरारत दे गए।
मर्ज़ होता तो शायद आराम भी मिलता पर
तुम अपनी लाइलाज याद दे गए।
by Santoshi
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