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पारस पत्थर
तुझे कोई जाने, या तू रह जाए अंजान..
क्या फर्क पड़ता है इस बात से,
बस तू खुदको पहचान..
तू अगर अगर कोई अमृत जो किसी को ना दिखा
इस बात से क्या गम है, तेरी अहमियत तो न घट गया..
तू खुदमे है एक दुनिया
तुझपे क्या क्या नहीं गुजर गया
हरना ह क्यु हिम्मत
खुदसे तो अब नजर मिला..
वो जीना वी क्या जीना
जो रुक के यू सिमट गया
कुछ छोटे ह तो क्या ह
तू चट्टान सा यू हो खड़ा..
तू खुदमे रोशन है
तुझसे अंधेरा का क्या फिकर
तेरी कामयाबी के किस्सो का
हो हर घर में जिक्र
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