...

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कुछ नहीं मेरे पास, फिर भी बहुत कुछ है...!
मेरे पास बहुत कुछ है...
शाम है बौछारों से भींगी हुई..
जिन्दगी है -नूर से तपती हुई...
और "मैं" हूं "हम"के झुरमूटों
से घिरा हुआ...
हम से क्या छिन लोगे??
शाम को दूर कहीं कोठरी में छिपा सकोगे?
जिन्दगी के नूर को मिटा सकोगे,?
मैं को हम से अलग कर सकोगे,?
जिसे मेरा कुछ नहीं कहते हो...
उसमें मेरे जीवन...