...

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देख लो ख़ुद
वो जो दरख़्त खड़ा है।
चुपचाप हमेशा रहता है।।

शाखाएं क्यों न कट जाए।
फल-फूल कोई भी ले जाए।।

गिले-शिकवे कभी न करता है।
देकर प्रतिदान नहीं मांगता है।।

नि: स्वार्थ सेवा सब का करता है।
राहगीर जो आता छाया पाता है।।

पतझड़ में भी मायूस न होता है।
एक उम्मीद पर खड़ा रहता है।।

आश्वस्त हैं, बहारें फिर आयेगी।
पुन: उसे हरा-भरा कर जायेगी।।

बसन्ती हवा का स्पर्श पाकर वह।
फिर से लहलहाती नज़र आयेगी।।