जरूरी तो नहीं
हर शब्द का आकार हो ज़रूरी तो नहीं ,
सजाऊँ मैं शब्दों के प्रकार ज़रूरी तो नहीं ,
कभी मौन की भी इक मर्यादा होती है ,
चीख में ही हर बात कहूँ वो ज़रूरी तो नहीं ,
हर दर्द की भी इक सीमा रेखा होती है ,
हर बार पलटवार ना करूँ ज़रूरी तो नहीं ,
निरीह सी आँखों में भी सपने सजे होते है ,
पंख कतरने की अनुमति दे दूँ ज़रूरी तो नहीं ,
जहाँ प्यार है सम्मान भी वही सजा रहता है ,
प्याला अपमान का हर बार पीयूँ ज़रूरी तो नहीं ,
ईश्क का जो दम्भ है उन आँखों में फिर क्यो ,
हर जख्म को कुरेद कर बताऊँ ज़रूरी तो नहीं ,
© Meeru
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सजाऊँ मैं शब्दों के प्रकार ज़रूरी तो नहीं ,
कभी मौन की भी इक मर्यादा होती है ,
चीख में ही हर बात कहूँ वो ज़रूरी तो नहीं ,
हर दर्द की भी इक सीमा रेखा होती है ,
हर बार पलटवार ना करूँ ज़रूरी तो नहीं ,
निरीह सी आँखों में भी सपने सजे होते है ,
पंख कतरने की अनुमति दे दूँ ज़रूरी तो नहीं ,
जहाँ प्यार है सम्मान भी वही सजा रहता है ,
प्याला अपमान का हर बार पीयूँ ज़रूरी तो नहीं ,
ईश्क का जो दम्भ है उन आँखों में फिर क्यो ,
हर जख्म को कुरेद कर बताऊँ ज़रूरी तो नहीं ,
© Meeru
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