...

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हिज्र...!
#हिज्र में उसके दिल बेचेन हुआ है जब से,
अपने दिल को मैं सीने से लगाकर सोता हूँ!

इन्तिज़ार में जागती हैं रात भर अखियाँ,
ख्यालों में ही सही तेरा दीदार कराकर सोता हूँ!

बहुत बेचेन था दिल मेरा दुनिया की इन रस्मों से,
अब मेैं सारी रस्मों से दामन छुड़ाकर जीता हूँ!

बहुत शिद्दत की उल्फत थी बिछड़ना कैसे मुमकिन है,
इसी एक खुद-फरेबी में मैं दिल बहला के सोता हूँ!

मुद्दत कई गुज़रें कई सदियां गुज़र जायें,
रहेगी दासतां ज़िन्दा मैं खुद को यूँ बहला के सोता हूँ!

कभी जो दर्द में तड़पे तो मुझको तू निदा देना,
मैं एक दर्द का मलहम दिल से लगाकर सोता हूँ!

जो होना था हुआ है वो चलो जाने भी दो अब तो,
खत़ा का है उसे एहसास सुना है वो भी रोता है!

हिज्र मनसूब है दर्द से और ये ही मुक़द्दर है,
वो भी बेचेन रहता है मैं भी बेचेन रहता हूँ ।

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© alfaaz-e-aas