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मन : एक बांध
भरे सागर सा मन मेरा,
बहने को तरसता जो,
डटा रहता बाँध सा अकसर,
बरसने को तरसता जो |
गौर फरमाता रहता अक्सर,
गौर मिले ना इसको जो,
भरता रहता धीरे-धीरे,
जैसे बूँद बनाये सागर को ||
बतलाने को रहता आगे,
रुके ना किसी के टोके से जो,
गुलाम बनाता जाये अक्सर,
इंसान झुकता जाए तो |||
बनती ना इसकी मस्तिष्क से,
बन जाए गर, खिलजाता वो,
रुके ना रुके, किसी बहाने से,
चंचल मन कहलाता जो ||||
भरे सागर सा मन मेरा,
बहने को तरसता जो..... 🖊️🖊️
© Sarang Kapoor
बहने को तरसता जो,
डटा रहता बाँध सा अकसर,
बरसने को तरसता जो |
गौर फरमाता रहता अक्सर,
गौर मिले ना इसको जो,
भरता रहता धीरे-धीरे,
जैसे बूँद बनाये सागर को ||
बतलाने को रहता आगे,
रुके ना किसी के टोके से जो,
गुलाम बनाता जाये अक्सर,
इंसान झुकता जाए तो |||
बनती ना इसकी मस्तिष्क से,
बन जाए गर, खिलजाता वो,
रुके ना रुके, किसी बहाने से,
चंचल मन कहलाता जो ||||
भरे सागर सा मन मेरा,
बहने को तरसता जो..... 🖊️🖊️
© Sarang Kapoor
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