...

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राहें
इस गुनाहों की दुनियां में,
इक मेरा भी गुनाह हैं
रहती किसी और संग मैं
कोई मुझसे तनहा हैं।

सूरज की नई किरण में,
उसे खोजने जाती हूं
आज तो मिलेगा शायद,
ये सोच कर सारा दिन बिताती हूं।

आसमां मुझे देख कर बड़ा खिलखिलाता हैं।
सूरज चढ़ती धूप में इक काली घटा लाता है।
हाय इक ये सावन भी ,
क्यों मुझे पर तरस खाता हैं।
ना जाने किस पे प्रेम लुटाता है।

तु मुझे पे प्रेम लुटायेगा,
मैं भूल जाऊगी,
तु रूठ जायेगा,
तु दुःख के गीत गायेगा,
किस को तु सुनायेगा,
क्या पास तेरे कोई आयेगा।

बादल भी कुछ बोल रहा,
कड़वी मिट्टी बातें मुख अपने में घोल रहा,
क्या यही दुनियां का सुरूर है।
मुझसे रहा ना गया,
जवाब दिया,
मैं जी रही हूं ,
क्या यही मेरा कसूर हैं।

वो भी रो पड़ा,
पहले टीप टीप,
पीछे अपना आपा खो पड़ा।

आंसुओं ने भिगोया मुझे,
बैचेनी ने घेर लिया,
आज आता शायद,
पर उसने भी डगर खो दिया।





© Jyoti Swami