राहें
इस गुनाहों की दुनियां में,
इक मेरा भी गुनाह हैं
रहती किसी और संग मैं
कोई मुझसे तनहा हैं।
सूरज की नई किरण में,
उसे खोजने जाती हूं
आज तो मिलेगा शायद,
ये सोच कर सारा दिन बिताती हूं।
आसमां मुझे देख कर बड़ा खिलखिलाता हैं।
सूरज चढ़ती धूप में इक काली घटा लाता है।
हाय इक ये सावन भी ,
क्यों मुझे पर तरस खाता हैं।...
इक मेरा भी गुनाह हैं
रहती किसी और संग मैं
कोई मुझसे तनहा हैं।
सूरज की नई किरण में,
उसे खोजने जाती हूं
आज तो मिलेगा शायद,
ये सोच कर सारा दिन बिताती हूं।
आसमां मुझे देख कर बड़ा खिलखिलाता हैं।
सूरज चढ़ती धूप में इक काली घटा लाता है।
हाय इक ये सावन भी ,
क्यों मुझे पर तरस खाता हैं।...