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मेरी कागज वाली डायरी
आज यकायक अपनी कागज वाली डायरी पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ।
विज्ञान चाहे जितनी प्रगति कर ले लोग चाहे इण्टरनेट डायरी , ऑनलाइन
डायरी किसी का उपयोग करें पर वो दो रु. की कलम से कोरे कागज की
डायरी में लिखने का जो आनंद है वह अन्य कहीं नहीं । वास्तव में कागज
पर लिखा हर लफ्ज अमर हो जाता है ।
डिजिटल डायरी पर लिखी कविता में वो महक वो खुशबू नहीं जो पुराने
बासी पन्ऩों पर लिखी कविता की होती है । सचमुच कागज एक अनोखा
मित्र है इसके साथ खुशी में हँस भी लो गम में इस पर आँसू भी बहा दो ।
जिंदगी के हर अफसाने बयाँ कर दो कितना भरोसेमंद साथी है ।

आज इंटरनेट पर लिखने में वो मजा नहीं
जो कागज में आता था ,
सच कहूँ तो वो कोई और जमाना था ।

वक्त नहीं मिलता ये तो बहाना हो गया,
सच कहूँ तो चिट्ठियाँ लिखें जमाना हो गया ।

साथियों डिजिटल डायरी , डिजिटल पेन आदि सब का उपयोग कीजिए पर कागज को अपने से अलग मत होने दीजिए।

लिखते थे बैठकर खत जिसपर वो छत अब कहाँ हैं ?
छत पर बैठकर लिखा करते थे जो , वो खत अब कहाँ है ?


© Prakash (प्रकाश )