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नही था
ख़ाक ही ख़ाक थी, और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था,
मैं जब आया, तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था!
क्या करूं, तुझसे ख्यानत नहीं कर सकता मैं,
वरना उस आंख में, मेरे लिए क्या कुछ नहीं था!
ये भी सच है के, उसने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा,
ये भी सच है के, उस औरत से छुपा कुछ नहीं था!
अब वो मेरे ही, किसी दोस्त की मनकुंआ है,
मैं पलट जाता, मगर पीछे बचा कुछ नहीं था!!
मैं जब आया, तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था!
क्या करूं, तुझसे ख्यानत नहीं कर सकता मैं,
वरना उस आंख में, मेरे लिए क्या कुछ नहीं था!
ये भी सच है के, उसने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा,
ये भी सच है के, उस औरत से छुपा कुछ नहीं था!
अब वो मेरे ही, किसी दोस्त की मनकुंआ है,
मैं पलट जाता, मगर पीछे बचा कुछ नहीं था!!
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