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❤️❤️।।मां मुझे डर लगता है।।❤️❤️
मां मुझे डर लगता है। बहुत डर लगता है सूरज की रोशनी आग सी लगती है पानी की बूंदे भी तेजाब सी लगती है मां हवा में भी ज़हर सा घुला लगता है।

मां मुझे छुपा ले बहुत डर लगता है।

मां याद है वह कांच की गुड़िया, जो बचपन में टूटी थी। मां कुछ ऐसे ही आज मैं टूट गई हूं। मेरी गलती कुछ भी ना थी फिर भी खुद से रूठ गई हूं।

मां बचपन में स्कूल की टीचर की गंदी नजरों से डर लगता था। पड़ोसन के चाचा के इरादों से डर लगता था, मां वह नुक्कड़ के लड़कों की बेवकूफ बातों से लगता था।

और अब बॉस के पैसे ही इशारों से डर लगता है।

मां मुझे छुपा ले बहुत डर लगता है।

मां तुझे याद है तेरे आंगन में चिड़िया सी फुदक रही थी। ठोकर खा के मैं जमीन पर गिर पड़ी थी, मां तूने तो मुझे फूलों की तरह पाला था।

उन दरिंदो का आखिर मैंने क्या बिगाड़ा था। क्यों वह मुझे इस तरह मसल के चले गए,बेदर्दी मेरे रूह को कुचल गए।

मां तू तो कहती थी अपनी गुड़िया को दुल्हन बनायेगी.......

मेरे इस जीवन को खुशियों से सजाएगी। मां क्या वह दिन जिंदगी कभी ना लाएगी। मां क्या अब तेरे घर बारात ना आयेगी।

मां खोया है जो मैंने क्या फिर से कभी ना पाऊंगी?

फिर मैं बोक्ष कैसे बन गई मां?
बेटी तो बेटी होती है ना मां चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान हो।

कहते हैं हमारा देश तो आजाद हो गया, मां पर बेटियां तो अभी भी आजाद नहीं हुई।

कहते हैं हमारे देश में अनेकता में एकता है, लेकिन यह इतना तो कहीं नहीं दिख रही है मां।