...

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“मौत कोई रुकावट नहीं"
लोग बदल रहे हैं देखो, मौसम को पीछे छोड़ रहे हैं,
मेरे हालात बदल जाते हैं, मैं इंसान देखो बदलता नहीं।

ये जिंदगी है यारों, कुछ भी होना संभव है,
मौत कोई रुकावट नहीं, हवाओं से मैं संभलता नहीं।

सामने तू खड़ी भी हो, ना मिलने की जिद पे अड़ी भी हो,
क्या खुश-फहमी है दिल की मेरे, जहन भी आजकल चलता नहीं।

परिंदे के पर काट कर, चैन भी तुझको मिला नहीं,
तेरे बेरहम दिल्लगी के खौफ से, घर से भी कोई निकलता नहीं।

ये मेरे ही कुछ जख्म है, मुझसे ही देखे जाते नहीं,
रोज सड़कों पे निकल आता हूं, कोई अपने जैसा दिखता नहीं।

ऐ-दिलबर मेरे, तू इतना बता, क्यूं मेरे हक में बोलता नहीं,
क्या तुझको भी कुछ डर है,
तेरे जैसा तो कोई, “जहर" उगलता नहीं।
© #Kapilsaini