4 views
सोचता हूं
तमाशा ऐ ख़ाक पे मुस्कुरा रहा हूं
मैं अपने ज़ख़्मों को आजमा रहा हूं
कि तमन्ना है तुम्हें भूल जाने कि
यादों से दामन ऐ यार जला रहा हूं
फुर्सत ऐ यार वफ़ा कि राहों में
मुन्तजिर मैं अपना सर टकरा रहा हूं
किसी ख़्वाब कि तासीर होने तक
कि क्यूं मैं आंखों को जला रहा हूं
क्या सोचता हूं और सोचता हूं
किसे मैं अपने ऐब गिनता रहा हूं
© Narender Kumar Arya
मैं अपने ज़ख़्मों को आजमा रहा हूं
कि तमन्ना है तुम्हें भूल जाने कि
यादों से दामन ऐ यार जला रहा हूं
फुर्सत ऐ यार वफ़ा कि राहों में
मुन्तजिर मैं अपना सर टकरा रहा हूं
किसी ख़्वाब कि तासीर होने तक
कि क्यूं मैं आंखों को जला रहा हूं
क्या सोचता हूं और सोचता हूं
किसे मैं अपने ऐब गिनता रहा हूं
© Narender Kumar Arya
Related Stories
8 Likes
0
Comments
8 Likes
0
Comments