सोचता हूं
तमाशा ऐ ख़ाक पे मुस्कुरा रहा हूं
मैं अपने ज़ख़्मों को आजमा रहा हूं
कि तमन्ना है तुम्हें भूल जाने कि
यादों से दामन ऐ यार जला रहा...
मैं अपने ज़ख़्मों को आजमा रहा हूं
कि तमन्ना है तुम्हें भूल जाने कि
यादों से दामन ऐ यार जला रहा...