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मैं मणिपुर हु मेरी सदाए सुनो
दर्द कितना अब किसे सुनाएं सुनो
ज़ख्म जा कर कहा पर दिखाए सुनो
रोए चीखें या फिर गिड़गिड़ाए सुनो
मैं मणिपुर हु मेरी सदाए सुनो

मेरी सांसों पे पहरा भला किस लिए
रूह पर ज़ख्म गहरा भला किस लिए
मेरे लोगों के घर और जान और माल का
मोल कुछ भी न ठहरा भला किस लिए
सर पटकने गली किसकी जाए सुनो
मैं मणिपुर हु मेरी सदाए सुनो

सब्ज़ वादी मेरी इन दिनों जर्द है
क्या बताऊं मेरा कौन हमदर्द है
जिन पहाड़ों पे था नाज़ मुझ को कभी
उन पहाड़ों से ऊंचा मेरा दर्द है
आ गई है हजारों बलाए सुनो
मैं मणिपुर हु मेरी सदाए सुनो

सामने आईने के जो होते हो तुम
शर्म का बोझ किस तरह धोते तो तुम
बेटियां जब सरे आम लुटती है तो
हकीमों किस तरह घर में सोते हो तुम
किसका दर जा के अब खटखटाए सुनो
मैं मणिपुर हु मेरी सदाए सुनो

नफरतो की नई आंधियां ओढ़कर
मैं पड़ा हु यहा सिसकियां ओढ़कर
ऐसी दिल्ली पे लानत हो हाकीम जहा
कब से बैठा है खामोशियां ओढ़कर
मेरे होठों पे है बस दुआएं सुनो
मैं मणिपुर हु मेरी सदाए सुनो

दर्द कितना अब किसे सुनाएं सुनो
ज़ख्म जा कर कहा पर दिखाए सुनो
रोए चीखें या फिर गिड़गिड़ाए सुनो
मैं मणिपुर हु मेरी सदाए सुनो

© Farhan Haseeb