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" सहारा "
जीवन रूपी इस नैया का,
यह खेल बड़ा निराला है।
खेलने को तो सब तैयार,
देता नहीं कोई सहारा है।।
मानवता की अलख जगाये,
दुखी जनों का बनों सहारा ।
कुटिलताओं को दूर भगाये,
जीवन होगा सफल हमारा ।।
मानवता से हम नाता जोडे ,
दिव्यांग जनों का बने सहारा।
इस धरा पर नहीं हो बेचारा,
एक दूसरे प्रति हो भाईचारा।।
सहारा मिला था सुदामा को,
शायद मिला नहीं किसी को।
कोई न जान पाया आज तक,
उस द्वारकाधीश की लीला को।।
जीवन की ये सच्ची परिभाषा,
मात-पिता का हम बने सहारा।
आओ सेवा से कभी न घबराना,
तभी जीवन सफल बने हमारा।।
यह खेल बड़ा निराला है।
खेलने को तो सब तैयार,
देता नहीं कोई सहारा है।।
मानवता की अलख जगाये,
दुखी जनों का बनों सहारा ।
कुटिलताओं को दूर भगाये,
जीवन होगा सफल हमारा ।।
मानवता से हम नाता जोडे ,
दिव्यांग जनों का बने सहारा।
इस धरा पर नहीं हो बेचारा,
एक दूसरे प्रति हो भाईचारा।।
सहारा मिला था सुदामा को,
शायद मिला नहीं किसी को।
कोई न जान पाया आज तक,
उस द्वारकाधीश की लीला को।।
जीवन की ये सच्ची परिभाषा,
मात-पिता का हम बने सहारा।
आओ सेवा से कभी न घबराना,
तभी जीवन सफल बने हमारा।।
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