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सोच ( कविता )
सोच (कविता)
एक छोटा सा शब्द है सोच
कितना गहराई है सोच मे
कभी किसी का चरित्र दशलाना
कभी किसी का कर्म बन जाना
कभी यह अच्छी सोच हो जाता
कभी किसी की गन्दी सोच बन जाता
कभी मेरे घर बालक ने जन्म लिया
कभी मेरे मित्रों के घर नयें शिशु का आगमन हुआ
युवा अवस्था मे हर जगह हमे जीवन दिखलाता ।
नया जीवन ही हमारी सोच बन कर
हमे उमंग की राह पर ले जाता ।
अचानक मेरे रिश्तेदार का जाना
कभी मेरे करीबी दोस्त का इंतकाल हो जाना
वृद्ध अवस्था में मेरी सोच को बदलता है
हर जगह मुझे मौत और गम ही दिखता है ।
मेरे प्रिय , जीवन तो वही है
फर्क सिर्फ इतना है हर अवस्था में
सोच से ही जीवन बदलता है ।
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