मौसम को देखा है
मैने बदलते रंग के हर एक मौसम को देखा है,
पतझड़ के बाद आते खिली बहार को देखा है।
मैने मेघों के भीषण गर्जन से गरजते
हुए ,अंबर को कोप से कांपते देखा है।
लेकिन भीषण आक्रोश के बाद उसी
अंबर मे रंग बिखरते हुए भी देखा है।
मैने बदलते रंग के हर एक मौसम को देखा है,
पतझड़ के बाद आते हुए बसंत के बहार को देखा है।
मैने जेठ के आतप से सुखी नदियों
को, वीरान पड़े करहाते हुए देखा है,
सावन में उसी नदी को उफ़ान लिए
फिर कूदते उछलते हुए भी देखा है।
मैने बदलते रंग के हर एक मौसम को देखा है
पतझड़ के बाद आते हुए बसंत के बहार को देखा है
मैने अमावस की भयानक काली रातों में,
उम्मीदों और सपनो को खोते हुए देखा है।
कालचक्र में विधि को स्वयं उलझते हुए देखा है,
लेकिन वक्त को पुनः बदलते हुए भी देखा है।
मैने हर काली रात के बाद धूप को चमकते हुए देखा है,
पतझड़ के बाद आते हुए बसंत के बहार को भी देखा है।।
पतझड़ के बाद आते खिली बहार को देखा है।
मैने मेघों के भीषण गर्जन से गरजते
हुए ,अंबर को कोप से कांपते देखा है।
लेकिन भीषण आक्रोश के बाद उसी
अंबर मे रंग बिखरते हुए भी देखा है।
मैने बदलते रंग के हर एक मौसम को देखा है,
पतझड़ के बाद आते हुए बसंत के बहार को देखा है।
मैने जेठ के आतप से सुखी नदियों
को, वीरान पड़े करहाते हुए देखा है,
सावन में उसी नदी को उफ़ान लिए
फिर कूदते उछलते हुए भी देखा है।
मैने बदलते रंग के हर एक मौसम को देखा है
पतझड़ के बाद आते हुए बसंत के बहार को देखा है
मैने अमावस की भयानक काली रातों में,
उम्मीदों और सपनो को खोते हुए देखा है।
कालचक्र में विधि को स्वयं उलझते हुए देखा है,
लेकिन वक्त को पुनः बदलते हुए भी देखा है।
मैने हर काली रात के बाद धूप को चमकते हुए देखा है,
पतझड़ के बाद आते हुए बसंत के बहार को भी देखा है।।