...

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बादल
बहोत दिनों से कुछ लिखा नहीं
शायद नया कुछ दिखा नहीं
इन घनघोर बादलों को कलम की तलाश है
कहीं उल्लास तो कहीं भय अंकित कर के ही मानेगा
एक अजीब सा मिश्रण लिए है प्रेम और वैराग का
आज कलम उठ जाए तो दो पंक्तियां लिख दूं

अब आ ही गए हो तो बरस भी जाओ
दो ठंडक या विनाश ही फैलाओ
कलम ले कर बैठा हूं तुम्हारी हठधर्मियो की
जो पन्ने गीले भी हो गए तो परवाह नहीं
आज अपनी शक्ति का परिचय करा दो
चलो, आज कुछ नया दिखला दो

बालकोनी में रखे पौधे ठीक से नहा नही पाएं महीनों से
थोड़ी तलब मुझे भी लगी ही है बारिश में भीगने की
धूल धूल की आंधियां हो गई बस
अब बूंदाबांदी से भी काम नहीं चलेगा
पकोड़े की बेसन घुल गई है
ऐ बादल आज तांडव दिखला दो
ऐ बादल आज जम कर बरसा दो

© अंकित राज "रासो"

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