...

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जब 'मैं' की हवा लगती है कोई 'दवा' कहाँ लगती है?
जिसको मैं की हवा लगती है,
उसको कोई दवा कहाँ लगती है?
प्रशंसा उसे औरों की खलती है,
अपनी ही बडा़ई उसे अच्छी लगती है।

अहम की धारा में बहता रहता,
रिश्ते-नाते सब भूल जाता है।
अहंकार में वो जीता मरता,
जिंदगी में दुखों की सजा लगती है।।
जिसको मैं की हवा.....

दंभ में डूबा वह औरों की कहाँ सुनता है?
कदम- कदम पर वो अपना राज चाहता है।
खुद को सबसे श्रेष्ठ समझता है,
डर भय...