...

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सफर
कांच के टुकड़ों से भरी है
जलती हुई आग से झुलस रही है
और गर्म आग पर पानी पढ़ने से हर पल राख सी बन रही है
जिंदगी कुछ ऐसे ही सफर पर चल रही है
थोड़ा जल, थोड़ी गल, थोड़ी पिघल रही है
ना जाने, कहा रुकेगा दर्द का ये सफर
ना जाने कब होंगे ये सारे दुख बेअसर


© Shanid