...

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तेरे साथ...
तेरी हर बात का ज़िक्र, शामिल हैं मेरी हर बात में,
तू मेरे पास ना हों, पर रहता हैं हर पल मेरे साथ में !
तेरा दिया वो पहला और आख़िरी गुलाब आज भी,
सम्भाल कर रखा हैं मैंने, अपनी इश्क़-ए-किताब में !!

रोज़. माना करता हूँ, और रोज़ चलें आते हैं बेशर्म,
तेरे ख़्वाब-ओ-ख़्याल, मेरी अँधेरों भरी हर रात में !
तू शामिल हैं मेरी हर साँस में, धड़कन में, हर लम्हें में,
तू हैं हर तरफ़ मुझमे, हैं तू शामिल मेरे हर जज़्बात में !!

दुनिया की मैं हर ख़ुशी छोड़ दु, एक तुम्हें पाने के लिए,
ज़िंदगी का सफ़र आसां हो, जो दे दे तू हाथ मेरे हाथ में !!
नहीं चाहिए मुझे शान-ओ-शौक़त, ज़र-ज़मी ना घर चाहिए,
मैं कांसा लिए अपने हाथ में, ख़ुदा से मांग लू तुझको खैरात में !!

© विकास शर्मा