...

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किसी का पता…
छुपा है कोई, ढूँढना है उसको !
जो समयसे था पहले…
जो रहेगा समय के बाद भी
आज नहीं तो कल को मुझे पाना है उसको,
मुझे दूर से नहीं !
पास से चाहना है उसको…

जो भी शरतें होगी मुझे मंज़ूर है सब,
जैसे शीशे का टुकड़ा सच बताता है सब…
क्या वो पारदर्शी होगा ?
या फिर कुछ जाना पहचाना ।
यह समझ देने वाले को,
सिर का ताज बनाना है उसको…
आज नहीं तो कल को मुझे पाना है उसको,
मुझे दूर से नहीं !
पास से चाहना है उसको…

शायद! सूरज, चाँद, सितारे है उसमें!
ब्राह्मंड के खूब सारे नज़ारे है उसमें…
इनको चलाती है एक शक्ति !
इसके बाद केवल बचती है भक्ति…
क्यों है दिन और क्यों है येन रातें,
किसने बनाया सब कुछ ढूँढना है मुझको…
आज नहीं तो कल को मुझे पाना है उसको,
मुझे दूर से नहीं !
पास से चाहना है उसको…

“जिंद” कोई तो है जो पहचानता इसको,
पूजा करता होगा कौनसा वरदान है उसको…
मैं मिलने को उत्सुक, मेरी उत्सुकता बढ़ रही हैं।
मुझे तो सोच कर उसकी नाम खुमारी चढ़ रही हैं ।
कोई होगा साथी इसका !
मैं मेरी हालत का हाल सुनाना है उसको…
आज नहीं तो कल को मुझे पाना है उसको,
मुझे दूर से नहीं !
पास से चाहना है उसको…

#जलते_अक्षर

© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻