...

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स्त्री तुम कब से कमजोर हो गई
स्त्री तुम कब से कमजोर हो गई कि तुम्हें ,
अपनी बातें कहने के लिए लोगों की जरूरत होने लगी।
मैं तो जानती हूं स्त्री के उस स्वरूप को जिसमे स्त्री अपने पति को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार देती थी, क्योंकि वह देश से पहले अपनी खुशियों को समझता था।
जो स्त्री देशद्रोही पति का साथ नहीं स्वीकारी वह स्त्री विचारहीन पति के सवालों का जवाब नहीं दे पा रही,
स्त्री तुम कैसे गलत के लिए नहीं गलत के साथ खड़ी हो गई ,
स्त्री तुम कब से कमजोर हो गई ।
स्त्री तुम तो अपने ऊपर हुए ज़ुल्म पर आवाज उठाने वाली थी तुम कब से जुल्म सहने लगी या फिर खुद ज़ुल्म करने लगी ,
स्त्री तुम तो निडर निर्भीक थी तुम कब से डरपोक हो गई ,
स्त्री तुम कब से कमजोर हो गई।