...

15 views

कहां तक चलता है
उड़ना तो अभी बहुत बाकी था
परिंदो का जोर कहां तक चलता है
निकाल कर मास खाने वाला था वो मेरी रूह का
दरिंदा था
दरिंदो का जोर कहां तक चलता है
आवाज बुलंद ही काफ़ी नही
साथ भी चाहिए कोई
ये शहर है
शहर में शोर कहां तक चलता है
बड़े अरसे से गुरबत भी हावी है दिल पर
देखते है " दीप " ये भी कब तक और चलता है
जो मेरे दुश्मन आज खुश है कल मलाल करेंगे
ये तो दौर है ,
किसी का दौर कब तक चलता है
ये इश्क है कत्ल करेगा , इसकी आदत है
ये तुम पर है , करके गौर कब तक चलता है

© शायर मिजाज