...

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मूस्काण की किमत
पेह्लू मै आकर रुक से गये ॥ कभी धूप बने कभी छाव कभी सीख बने कही राज ॥

क्यू खामोषिया लिपट सी गयी
क्यू सरगोषिया मदमस्त सी हुई ॥
राह चलकर जो गये मंजिल की
मूड गयी राह ;फिर उस तरफ !
हर बात को समज गये हर चीज भी परख गये हासिल हर लन्म्हा कर से गये ॥
पर फिर भी क्यू न जाणे ये बात हो गयी
सीतम सी ये रात हो गयी ।

अब कभी तो खुद...