"ज़ज़ा"
"न्यौता मिला था मुझे पर मैं अटक गई,
खिंचती चली आई तुम तक ,भटक गई।
ख़ुमारी कहें या कहें उसे जुनूँ पता नहीं,
शिद्दत से चाहना किसी को ख़ता नहीं।
गाहे बगाहे हर बात ही अंदाज-ए-नायाब,
कोई...
खिंचती चली आई तुम तक ,भटक गई।
ख़ुमारी कहें या कहें उसे जुनूँ पता नहीं,
शिद्दत से चाहना किसी को ख़ता नहीं।
गाहे बगाहे हर बात ही अंदाज-ए-नायाब,
कोई...