...

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हम शायद कुछ कम
टूट रहें हैं धीरे धीरे,
क्या कभी कुछ बन पाएंगे.
वक्त की इस तेज़ गति में
क्या पीछे छोड़ पाएंगे,
टूटी हुई आस,
जो न मिल पाया वो...