...

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हम शायद कुछ कम
टूट रहें हैं धीरे धीरे,
क्या कभी कुछ बन पाएंगे.
वक्त की इस तेज़ गति में
क्या पीछे छोड़ पाएंगे,
टूटी हुई आस,
जो न मिल पाया वो साथ,
विश्वास की कमी,
जिससे जिन्दगी जा थमी.
टूट तो रहें हैं,
बस बिखरने की कस़र है,
प्यार तो है बस,
साथ क्यों बेअसर है.
दुआ दें भी तो पहुँचती नहीं,
हम ही बुरे हैं, या
नेक नियति में कमी है.


© wandering soul