सफर,,
चलो चलते हैं उस रस्ते पे,
जहां मंजिल की तलाश थी,
चलते हैं उस सफर पे,
जहां से शुरुआत की।
चलते हैं उस वक्त में,
जब हम बेफिक्र थे,
जहां न आने वाला कल का ख्याल था,
न बीते हुए कल का मलाल।
जब ये जहाँ,
तितलियों से भरा फूलों का एक बाग था,
जहां हम दुनिया के दांव–पेच से अंजान थे,
जब हम कुछ अल्हड़ तो कुछ समझदार थे।
चलो चलते हैं उस बचपन की उन गलियों में,
जहां हर गली में सपनों का मेला था,
जहां ख्वाबों के परिंदे खुले आसमान में उड़ते थे,
और हर दिन एक नई उम्मीद का सबेरा था।
चलो चलते हैं उस मासूमियत की छांव में,
जहां दिल साफ था, न कोई चालाकी थी,
जहां हर खुशी छोटी थी पर एहसास गहरे थे,
और हर शाम दोस्ती की सौगात लाती थी।
चलते हैं उस बारिश की बूंदों में,
जहां हर बूंद एक नया ख्वाब सजाती थी,
जहां कागज़ की कश्ती से भी दुनिया जीत लेते थे,
और हर छोटी खुशी में पूरी कायनात बसी थी।
चलो लौटते हैं उन यादों के मकान में,
जहां न हार का डर था, न जीत की चाह,
बस बेफिक्री थी, और ज़िंदगी से इश्क था,
जहां हर कदम पर अपना ही एक जहान था।
चलो चलते हैं उस खिलखिलाहट की आवाज़ में,
जहां हर हंसी दिल से निकलती थी,
जहां न झूठी मुस्कानों का बोझ था,
बस खुशियों का सच्चा अहसास था।
चलते हैं उस सवेरे की ठंडी हवा में,
जहां सूरज की पहली किरण नई...
जहां मंजिल की तलाश थी,
चलते हैं उस सफर पे,
जहां से शुरुआत की।
चलते हैं उस वक्त में,
जब हम बेफिक्र थे,
जहां न आने वाला कल का ख्याल था,
न बीते हुए कल का मलाल।
जब ये जहाँ,
तितलियों से भरा फूलों का एक बाग था,
जहां हम दुनिया के दांव–पेच से अंजान थे,
जब हम कुछ अल्हड़ तो कुछ समझदार थे।
चलो चलते हैं उस बचपन की उन गलियों में,
जहां हर गली में सपनों का मेला था,
जहां ख्वाबों के परिंदे खुले आसमान में उड़ते थे,
और हर दिन एक नई उम्मीद का सबेरा था।
चलो चलते हैं उस मासूमियत की छांव में,
जहां दिल साफ था, न कोई चालाकी थी,
जहां हर खुशी छोटी थी पर एहसास गहरे थे,
और हर शाम दोस्ती की सौगात लाती थी।
चलते हैं उस बारिश की बूंदों में,
जहां हर बूंद एक नया ख्वाब सजाती थी,
जहां कागज़ की कश्ती से भी दुनिया जीत लेते थे,
और हर छोटी खुशी में पूरी कायनात बसी थी।
चलो लौटते हैं उन यादों के मकान में,
जहां न हार का डर था, न जीत की चाह,
बस बेफिक्री थी, और ज़िंदगी से इश्क था,
जहां हर कदम पर अपना ही एक जहान था।
चलो चलते हैं उस खिलखिलाहट की आवाज़ में,
जहां हर हंसी दिल से निकलती थी,
जहां न झूठी मुस्कानों का बोझ था,
बस खुशियों का सच्चा अहसास था।
चलते हैं उस सवेरे की ठंडी हवा में,
जहां सूरज की पहली किरण नई...