पंखुड़ियां बिना खिले ही मर गई
पंखुड़ियां बिना खिले ही मर गई
जिसे इस जहां का रौनक बनना था एक दिन
पूरे जहां को अपनी काबिलियत की खुशबू से
रौशन करना था जिसे
अपने कोमल पंखुड़ियों के स्पर्श से
मरीजों का दुःख हरना था जिसे
वो बेवक्त इस दुनियां...
जिसे इस जहां का रौनक बनना था एक दिन
पूरे जहां को अपनी काबिलियत की खुशबू से
रौशन करना था जिसे
अपने कोमल पंखुड़ियों के स्पर्श से
मरीजों का दुःख हरना था जिसे
वो बेवक्त इस दुनियां...