...

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एक मोर की प्रेम कहानी....


बीती शाम की वो तेज हवा याद तो होगी तुम्हे ....
तुम बालकनी में खड़ी ...उस तेज हवा का कहर देख रही थी ..
क्या मुझे पहचाना ......
तुम्हारी बालकनी के सामने ....गुलमोहर के पेड़ पर बैठा मैं वो ही मोर हूँ
जो उस तेज हवा के थपेड़े सह कर भी वहीँ था
क्यूंकि तुम वहां खड़ी थी न ............
मुझे अच्छा लगता है ..तुम्हारा हँसता खेलता घर
मैं कई बार ख़ुशी में झूम उठता हूँ ...तुम्हारी छत पर
मुझे अच्छा लगता है ....तुम्हारी मुंडेर पर घंटो बैठे रहना
मैं जब भी तुम्हारी छत पर ...नाचता हूँ ...अपने कुछ पंख छोड़ देता हूँ ...
जानती हो ....मुझे पता है तुम वो सब बटोर लेती हो ...
और जहाँ तुमने अपने परिवार की तस्वीर लगाई है ......
वहा टांक देती हो...