...

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क्या जिए...
सो साल जिए भी तो क्या जिए...
जिस जीने में न किसी का साथ हो,
न दुआ में उठा किसी के लिए ये हाथ हो,
न किसी के होठों पर मुस्कान लाई और न ही किसी के मन में तेरी मीठी याद हो...

बस चार दिन जिए तो यूं जिए...
जिस जीने में किसी का निस्वार्थ साथ हो,
किसी के लिए कर दुआ या तेरे कारण उसके होठों पर मुस्कान हो,
तू रहे या ना रहे मगर उनके दिलों में तेरी सदा धड़कती वो सुंदर याद हो...

जिए तो बस यूं जिए वरना जीने में क्या जीवन का एहसास हो...

© B. Talekar

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