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इश्क से बाहर आना ।
इश्क से बाहर आना ।

कैसे ब़या करे
कितना मुश्किल है इश्क से बाहर आना ,
कैसे ब़या करे
कितना मुश्किल है इस जि़द्दी दिल को समझाना ।

इश्क का नशा शायद सबसे नशीला होता हैं ,
जाम तक की ज़रूरत नहीं हैं इसमें
क्योकि आँखो से आँसू जब छलकते है
तो बरसते हुए आसमान में भी उन धुंधली यादों के वो कुछ फव्वारें ज़रूर झलकते हैं ।

किसी का प्यार जब एक तरफा होता है
तो शुरू में थोडी़ तकलीफ भी होती हैं
पर आखिरकार
सामने वाले की खुशी ही सबसे आरामदायक साबित होती हैं ।

इश्क से बाहर आना
तो
बस मन का खेल हैं ,
तो जो दिल में हैं
उसे सूकून से वहीं रहने दीजिए ,
आशिक का चेहरा बदल सकता हैं
पर इश्क अपनी जगह हमेशा ही महफू़ज रहता हैं ।

साहब , अगर इश्क से बाहर आना हैं
तो तमाम उन ख्वाबों को खुली नज़रों से देखिए
क्योकि ख्वाब से कई ज्यादा हसीन
ये सुनहरी जि़दंगी की हकीकत हैं ।


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