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ना जाने क्यों।
डर लगता है यकीन करने में,
दिल सब कुछ जानते हुए भी ना जाने क्यों
घबराया - घबराया सा रहता है ।
बैचेन मन ना जाने क्यों,सुकून खोजने की
चाह में रहता है।
अपना मान के भी अपनाने में ,ना जाने क्यों
हिचक सा होता रहता है।
दिल किसी को दे दो, फिर ना जाने क्यों
दुखी सा मन होता रहता है ।
उसके दूर होने का , ना जाने क्यों
डर सताता रहता है।
कैसी बेबसी ये होती है , किसी की फरमाइशें
ना जाने क्यों, अच्छी लगती है।
उनके एक हंसी के लिए, ना जाने क्यों
अपनी ख्वाहिशें छोटी होने लगती है।
ना जाने क्यों, उधेड़बुन ये क्यों सर में
हलचल लाए जा रहा है ।
#writco #hindi #writcoapp #poem
© Mishraiin
दिल सब कुछ जानते हुए भी ना जाने क्यों
घबराया - घबराया सा रहता है ।
बैचेन मन ना जाने क्यों,सुकून खोजने की
चाह में रहता है।
अपना मान के भी अपनाने में ,ना जाने क्यों
हिचक सा होता रहता है।
दिल किसी को दे दो, फिर ना जाने क्यों
दुखी सा मन होता रहता है ।
उसके दूर होने का , ना जाने क्यों
डर सताता रहता है।
कैसी बेबसी ये होती है , किसी की फरमाइशें
ना जाने क्यों, अच्छी लगती है।
उनके एक हंसी के लिए, ना जाने क्यों
अपनी ख्वाहिशें छोटी होने लगती है।
ना जाने क्यों, उधेड़बुन ये क्यों सर में
हलचल लाए जा रहा है ।
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